भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान (भाफिटेसं) की स्थापना भारत सरकार द्वारा सन् 1960 में पुणे स्थित पूर्ववर्ती प्रभात स्टूडियो के परिसर में की गई।
भाफिटेसं कैम्पस वर्तमान में पूर्ववर्ती प्रभात स्टूडियो की भूमि पर अवस्थित है। प्रभात स्टूडियो फ़िल्म निर्माण के व्यवसाय में अग्रणी था और उसे सन् 1933 में कोल्हापुर से पुणे स्थानांतरित कर दिया गया था। अपने समय के सबसे पुराने स्टूडियो, जो कभी प्रभात की फ़िल्मों के निर्माण स्थल थे, वे आज भी मौजूद हैं और भाफिटेसं में उनका उपयोग किया जा रहा है। प्रभात के पुराने स्टूडियो अब विरासती संरचना बन गए हैं तथा भाफिटेसं के विद्यार्थीगण विश्व के सबसे पुराने कार्यरत फ़िल्म शूटिंग स्टूडियो में कार्य कर रहे हैं।
हम सभी जन्मजात रचनात्मक होते हैं । जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हमारा समाज अथवा शायद हमारी शिक्षा प्रणाली, हमें हमारी रचनात्मक इच्छाओं को दबाना सिखाते हैं और यह हमारे इर्द-गिर्द की दुनिया को हम कैसे समझते हैं, यह अभिव्यक्ति की चाह भी भुल जाते हैं । हर कोई दुनिया को अलग-अलग तरीके से समझते हैं। जैसे हमारे फिंगरप्रिंट अलग-अलग होते हैं, उसी तरह सभी की समझ भी अलग-अलग होती है ।
दुनिया के प्रति हमारी समझ को अभिव्यक्त करने का साहस ही किसी कलाकार को परिभाषित करता है । फिर चाहे वो फ़िल्म निर्माता, चित्रकार, कवि या संगीतकार हो । किसी कोरे कैनवास का सामना करने और उसपर पहला ब्रश चलाने का साहस होना चाहिए । वह प्रथम प्रयास ही किसी शेष चित्रकारी, शेष तारतम्यता या शेष फ़िल्म की खोज शुरू करता है।
तो, आप फ़िल्म बनाना या इसके पहलुओं को कैसे सिखायेंगे ? चाहे हो निर्देशन, अभिनय, ध्वनि या लेखन ।
साधरण- सा उत्तर है । आप सिखा नहीं सकते । आप केवल किसी विद्यार्थी के भीतर के कलाकार को जागाने का काम कर सकते हैं । आप बस विद्यार्थियों को उनमें छिपे कलाकार को बाहर लाने के लिए प्रोत्साहित ही कर सकते हैं । इसी के साथ आप उन्हें यह सीखने की स्वतंत्रता देते हैं कि वे स्वयं के नज़रिये से दुनिया को अभिव्यक्त करने के लिए अपनी चयनित कला की तकनीक, कैमरा लेंसों, संपादन मशीन, पैन, शरीर, आवाज़, अन्तरात्मा का कैसे उपयोग करें ।
इसमें कोई अध्यापन नहीं है, परंतु शिक्षक और छात्र के बीच सह - अध्ययन है । एक तरह से, अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति को पुन: सीखने में बहुत कुछ भुलाने की प्रक्रिया भी सम्मिलित है।
आशा है कि इस संस्थान के अध्यक्ष के रूप में मेरे कार्यकाल के दौरान मुझे सीखने और कुछ भुला देने के अनंत अनुभव प्राप्त होंगे ।
- शेखर कपूर
आउटरीच विभाग की स्थापना वर्ष 2012 में की गई। यह विभाग पूरी दुनिया के फ़िल्म स्कूलों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है तथा यह एक गतिशील विनिमय की सुविधा प्रदान करता है। यह छात्रों एवं संकाय सदस्यों के विनिमय और संवर्धन कार्यक्रमों को आयोजित करता है। यहां छात्रों को सीखने एवं विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है,...
भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान (भाफिटेसं) की शैक्षिक पत्रिका ‘लेंससाइट’ में समकालीन सिनेमा पर चर्चा एवं लेख, इसके इतिहास एवं सौंदर्यशास्त्र के साथ इस पर चर्चा शामिल होती है कि किस प्रकार मूविंग इमेजेज को डिजिटल मीडिया प्रभावित कर रहा है। लेंससाइट का त्रैमासिक प्रकाशन किया जाता है।...
आप जब भी भाफिटेसं आयें, वर्ष 2001 में भाफिटेसं परिसर में स्थापित प्रभात म्यूजियम जरूर जायें। परिसर में मौजूदा गतिविधियों के अलावा, सन् 1931 में स्थापित प्रभात फ़िल्म कम्पनी की विरासत को उसके स्थापना काल से अनुभव किया जा सकता है। यह म्यूजियम ऐतिहासिक प्रभात स्टूडियो के मूल भवन में स्थापित है, जो कि 1000 वर्गफीट क्षेत्र में फैला हुआ है।...
रेडियो एफटीआईआई 90.4 एक कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन है, जिसका उद्घाटन 29 जनवरी 2007 को किया गया था। इसे भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की कम्यूनिटी रेडियो नीति के तहत प्रारम्भ किया गया है। भाफिटेसं उन प्रारम्भिक आवेदकों में से एक है, जिन्होंने कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन स्थापित करने की पहल की थी। यह कम्यूनिटी रेडियो 1 जून 2006 से परीक्षण...
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