भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान (भाफ़िटेसं) ,पुणे द्वारा "आलोचना : सिनेमा के बहाने" इस पाठ्यक्रम की घोषणा की गई है ।
विवरण निम्नलिखित हैं :
(1) पाठ्यक्रम का नाम : आलोचना: हिंदी सिनेमा के बहाने
(2) दिनांक और अवधि: 1 - 26 फरवरी 2021 (20 दिन, सोमवार से शुक्रवार, शनिवार और रविवार अवकाश )
(3) समय - सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक और दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक ( 4 घंटे, प्रतिदिन )
(4) प्रतिभागियों की संख्या: 35 (28 प्रतिभागियों से कम होने की स्थिति में कोर्स रद्द किया जा सकता है । )
(5) फीस : इस पाठ्यक्रम के लिए दो तरह की फीस होगी ।
(6) क ) पंजीकरण फीस : भारतीय प्रतिभागियों के लिए रुपये 500/- (जीएसटी सहित ) । विदेशियों, ओसीआई, पीआईओ और देश से बाहर रह रहे भारतीयों के लिए फीस रूपये 1,500/ -(जीएसटी सहित ) ।
ख ) पाठ्यक्रम फीस : भारतीय प्रतिभागियों के लिए रूपये 14,500 / - (जीएसटी सहित ) । विदेशियों, ओसीआई, पीआईओ और देश से बाहर रह रहे भारतीयों के लिए फीस रूपये 43,500/ - (जीएसटी सहित) ।
(7) आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि: 18 जनवरी, 2021
(8) प्रतिभागी की आयु : 21 वर्ष (31 दिसंबर, 1999 या उससे पूर्व जन्म लेने वाले प्रतिभागी)
(9) प्रतिभागी के लिए शिक्षा मानदंड : स्नातक डिग्री वे प्रतिभागी जिन्होंने स्नातक डिग्री की अंतिम वर्ष की परीक्षा दी है या अंतिम वर्ष की परीक्षा का परिणाम घोषित नहीं हुआ है ,उन प्रतिभागियों का चयन आवेदन पत्र में दी गई जानकारी के आधार पर किया जायेगा ।
(10) ऑनलाइन प्लेटफॉर्म: गूगल क्लासरूम या समकक्ष प्लेटफॉर्म
(11) निर्देशों का माध्यम: हिंदी
(12) कोर्स निदेशक: राजुला शाह
राजुला कवि-कलाकार-फिल्मकार हैं। वे भारतीय फिल्म और टीवी संस्थान से फिल्म निर्देशन में स्नातकोत्तर हैं। उन्होंने कुछ वर्ष वहां अध्यापन भी किया है। उनका प्रमुख सरोकार लोक में व्याप्त वाचिक परंपरा से जुड़ा है । उनका दो दशकों का काम कला-साहित्य-दर्शन-सिनेमा की साझा ज़मीन पर आत्म और लोक के संवाद में स्थित है; फिल्में अक्सर साधारण जनों के अंतर्जगत और बाह्यजगत के बीच संवाद का पुल बनाने का काम करती हैं। कथात्मक-गैरकथात्मक सिनेमा के द्वैत के पार इनका सिनेमा प्रयोग की कगार पर एक आत्मीय सहज सिनेमा का आह्वाहन करता है।
प्रमुख पुरस्कारों में उनकी चर्चित फिल्म सबद निरंतर (2008) को जर्मनी के डॉकफेस्ट में होरिजोंटे पुरस्कार व कथा लोकनाथ (2012) और ऐसा नहीं हुआ था ताहेरा (2013) को साइन्ज़ केरल के जॉन अब्राहम राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया है। हाल की फिल्म चलो सखा उस देस में की यामागाता जापान व जिहलावा चेकोस्लोवाकिआ में सराहना हुई है। वे कई राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के चुनाव मंडल और निर्णायक मंडल में रहीं हैं।
वे सिनेमा पर लिखती हैं। उन्होंने कालजयी चित्रकार विन्सेंट वान गॉग के पत्र; गांधीवादी समाज वैज्ञानिक इला भट्ट की लड़ेंगे भी रचेंगे भी समेत कई महत्वपूर्ण पुस्तकों के उन्होंने अनुवाद किये हैं। उनके कविता संग्रह परछाईं की खिड़की (2005) को ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार प्राप्त है।
सिनेमा के अध्ययन-अध्यापन से उनका सरोकार गहरा और लम्बा है। फिल्म पटकथा-लेखन व निर्देशन में युवा फिल्मकारों के मार्गदर्शन के अलावा उन्होंने फिल्म रसास्वादन, आलोचना समेत अनेक नए रचनात्मक पाठ्क्रमों का प्रवर्तन-सञ्चालन किया है।
आवेदन कैसें करें - वेबसाइट पर उपलब्ध करवाये गये ऑनलाइन आवेदन पत्र (गूगल आवेदन पत्र) भरें । भारतीय प्रतिभागियों के लिए रुपये 500/- (जीएसटी सहित )। विदेशियों, ओसीआई, पीआईओ और देश से बाहर रह रहे भारतीयों के लिए फीस रूपये 1,500 / -(जीएसटी सहित ) ।
एसबीआई पेमेंट पोर्टल के माध्यम से https://www.onlinesbi.com/sbicollect/icollecthome.htm भाफिटेसं के खाते में ऑनलाइन ट्रांसफर किया जाना चाहिए अथवा www.onlinesbi.com को देखें और आगे “ S B I Collect ” पर क्लिक करें, जो बायें शीर्ष की और है । क्षैतिज (सीधे) रूप में बायें से दाएं 6 वें स्थान पर है । आवेदन पत्र के साथ भुगतान की रसीद की एक प्रति अपलोड होनी चाहिए । कोई भी आवेदन, जिसमें आवश्यक जानकारी अधूरी है, आवेदक की फोटो अथवा भुगतान की रसीद नहीं है, तो वह आवेदन पत्र स्वीकार नहीं किया जायेगा ।
चयन मानदंड : प्रतिभागियों का चयन आवेदन पत्र मे दी गई जानकारी के आधार पर किया जायेगा ( गूगल आवेदन पत्र ) ।
प्रमाणपत्र : सभी प्रतिभागियों को पाठ्यक्रम की सफलतापूर्वक समाप्ति पर ई प्रमाणपत्र (सर्टिफिकेट) प्रदान किये जायेंगे । न्यूनतम 90% उपस्थिति अनिवार्य है।
प्रश्न : किसी भी प्रश्न के लिए कृपया श्री मिलिंद जोशी, सलाहकार, आउटरीच, भाफ़िटेसं से
ftiioutreach@gmail.com पर संपर्क करें ।
पाठ्यक्रम की अवधारणा
भारत में सिनेमा को आए 107 बरस हो गये हैं। देश में कई भाषाएँ और बोलियाँ हैं जिनमें सिनेमा बनता है, बनता रहा है। सबका अपना सांस्कृतिक परिवेश, अंदाज़ और ख़ासियतें हैं। हिन्दी देश के एक बड़े हिस्से में बोलचाल की, जोड़नेवाली भाषा रही है । हिन्दी में कई तरह का सिनेमा बना है। उसके इतिहास में कई प्रकार का सिनेमा शामिल है। मुख्य तौर पर इसे व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक सिनेमा में बाँटकर देखा-परखा जा सकता है। जहाँ एक ओर व्यावसायिक सिनेमा के पास निर्माण की बड़ी पूँजी, एक लोकप्रिय मुहावरा, मँहगे विज्ञापन और दूर-दूर तक पहुँचने के साधन आदि पर ज़ोर रहा है वहीं गैर-व्यावसायिक सिनेमा के निकटमाध्यम की विशिष्टता का आग्रह, कला का जोखिम और पारखियों को अपने पास बुलाने का हुनर अहम रहा है । दोनों का अपना दर्शक वर्ग, चुनौतियाँ और प्रभाव क्षेत्र हैं। सौ बरसों में सिनेमा का स्वरूप बदलता रहा है। और उसके विकास की दिशा और निर्देशकों के मौलिक अवदान के मूल्यांकन आदि की दरकार भी अनुपात में बढ़ी है ।
दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत में देसी भाषाओं में सिनेमा के गंभीर अध्ययन के अवसर सीमित और स्तरीय सामग्री दुलर्भ रहे हैं। हिन्दीभाषी क्षेत्रों में अधिकांश साधन-सामग्री अँगे्रज़ी ना जाननेवालों के हिस्से से बाहर रही आयी है। ऐसी कुछ वजहों से हिन्दी में सिनेमा पर चिंतन, व मौलिक लेखन का संकट पिछले तीन दशकों में गहराया ही है। यह हिन्दी में स्वस्थ सजग सिनेमा और उसके दर्शकों के लिए अच्छी ख़बर नहीं है। एक सजग आलोचकीय दृष्टि और सहज मुक्त चिंतन हर स्वस्थ समाज व उसकी कला,साहित्य, सिनेमा की ताकत होता है ।
यह कोर्स मातृभाषा में सोच-विचार, विमर्श की दिशा में भारतीय फिल्म संस्थान की पहल है, जिसका आरंभ हिन्दीसे हो रहा है। यह हिन्दी भाषाईसिनेमा के बहाने सिने-रसास्वादन और सिने-आलोचना को हिन्दी मेंजानने-बूझने, समझने-समझाने का नया प्रयास है। इसका प्रमुख उद्देश्य सिनेमा में आलोचकीय दृष्टि का निर्माण और हिन्दी में सिनेमा आधारित अध्ययन-मनन-लेखन को बढ़ावा देना है।
पाठ्यक्रम की रुपरेखा
आलोचना कोर्स के सहभागियों से अपेक्षित है कि वे कोर्स के दौरान सिनेमा सम्बंधित पठन-पाठन में सक्रिय योगदान देंगे। सिनेमा पर नियमित लेखन, ऑडियो-वीडियो समीक्षा, दैनंदिन फिल्म डायरी, विचार-विमर्श आदि कोर्स के सहज आवश्यक अंग होंगे ।
कोर्स में सिने माध्यम के महत्वपूर्ण आयामों का गहरा विवेचन, चुनिंदा पक्षों पर सोदाहरण व्याख्यान व अध्ययन; सिनेमा के स्वरूप, स्वभाव, गुण-दोष आकलन और सिने अध्ययन में आलोचकीय दृष्टि के निर्माण पर विचार होगा । अध्ययन के कुछ प्रमुख तत्वः
- भारत में सिनेमा का शुरुआती काल व विभिन्न प्रभावों का अध्ययन ।
- पड़ोसी कलाओं/ ज्ञानरूपों-साहित्य, दर्शन, नाट्य, नृत्य, संगीत, कला सेसिनेमा का अंर्तसम्बंध,
संवाद और विवाद । नाट्य-कला परंपरा का संक्षिप्त परिचय और भावभूमि ।
- सिनेमा इतिहास के सृजन क्रम में चुनिंदा कथाकार, कवि/गीतकार, संगीतकार, गायक, अभिनेता,
कलाकार, निर्देशक आदि की भूमिका और रचनात्मक अवदान पर व्याख्यान व चर्चा ।
- इतिहास क्रम में फिल्म स्कूल, राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार, फिल्म सोसायटी आंदोलन आदि की
भूमिका/योगदान पर विचार ।
- सिनेमा के दर्पण में प्रतिबिम्बित सामाजिक परिवेश, सरोकार, मूल्य, राजनैतिक संदर्भपर मनन ।
- व्यक्तित्व के गठन और समाज के निर्माण मेंसिनेमा की भूमिका व दायित्व पर चिंतन इत्यादि ।
प्रतिभागियों की तकनीकी आवश्यकताएं
(i) एक डेस्कटॉप / लैपटॉप जिसमें न्यूनतम 8 जीबी रैम, 1.6 गीगाहर्ट्ज़ या इससे और अच्छा
प्रोसेसर (इंटेल i3 या i5 या बेहतर) हो। (विंडोज / मैक)
(ii) ऑपरेटिंग सिस्टम : क ) विंडोज 7 या 8 या 10. ख ) मैक ओएस सिएरा या लेटर
(iii) ऑडियो - विडियो सॉफ्टवेयर : वीएलसी प्लेयर, विंडोज मीडिया प्लेयर या क्विक टाइम प्लेयर
के नवीनतम संस्करण।
(iv) माइक के साथ संगत अच्छी गुणवत्ता के हेडफोन / इयरफ़ोन
(v) संगत एचडी वेब कैमरा
(vi) प्रति दिन लगभग 6 जीबी की डाउनलोड सीमा के साथ, 10 एमबीपीएस की न्यूनतम गति के
साथ फिक्स्ड वायर्ड इंटरनेट कनेक्शन । (पाठ्यक्रम निदेशक द्वारा अनुशंसित चार घंटे ऑनलाइन
2. State of Corporate / Institution में All India को सलेक्ट करें, फिर Type of Corporate / Institution में Educational Institutions का चयन करें और GO पर क्लिक करें।
3. Educational Institutions Name में FTII Fees Account को खोजें और Submit क्लिक करें।
4. Select Payment Category में Regn. Fee for Alochana: Hindi Cinema Ke Bahane online को चुने ।
5. आवश्यक विवरण के साथ भुगतान पत्र को भरें और भुगतान के लिए आगे बढ़ें ।
*** भुगतान की रसीद की एक प्रति आवेदन पत्र के साथ अपलोड करें।
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